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User:संभव जैन बहादुरपुर

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ये रात काली है मगर कल फिर सबेरा आएगा

डूबा है सूरज आज पर

   कल फिर वही उग आएगा
ये रात काली है मगर...... 

क्यों रो रहा, क्यों डर रहा,

 क्यों हो रहा बेचैन तू
    कुछ वक्त की बेचैंगी पर चैन
       फिर से आएगा 
ये रात काली है मगर......

ये वक़्त कातिल है मगर

  कुछ वक़्त में, कट जाएगा

ये रात काली है मगर......

राह में कंकड़ है काटे है मगर

    रुकना नहीं चलते रहो
        तुम राह पर, फिर पथ नया मिल जाएगा
  ये रात काली है मगर......

ये वक़्त है चलता रहेगा

   कल दिन नया ले आएगा

ये रात काली है मगर......

ये रात की खामोशी मानो

      यही है कह रही मत डगमगा
           कर सामना,ये अंधकार मिट जाएगा
ये रात काली है मगर......

ये जिंदगी है डराएगी

 जो डर गया सो मर गया
ये रात काली है मगर......

डूबा है सूरज आज पर

  कल फिर वहीं उग आएगा

ये रात काली है मगर

    कल फिर सबेरा आएगा।।
         - संभव जैन बहादुरपुर(घुवारा)
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